शाही नौसेना का विद्रोह क्यों हुआ था
नौसेना विद्रोह (1945-1946 ई.) ब्रिटिश जहाज़ पर कार्य करने वाले कर्मचारियों द्वारा किया गया था। 18 फ़रवरी, 1946 ई. को ‘एन.एस. तलवार’ नामक जहाज़ के कर्मचारियों ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष ख़राब खाना मिलने की शिकायत की। इस पर ब्रिटिश अधिकारियों का जवाब था कि “भिखमंगों को चुनने की छूट नहीं हो सकती।” नौसेना कर्मचारियों ने सरकार की इस विभेदात्मक नीति के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया।
“भारतीय नाविकों को 16 रुपये प्रति माह मिलता था, जबकि एंग्लो इंडियन नाविकों की पगार 60 रुपये थी। एक दिन हम सब 127 नाविकों ने नाश्ते से मना कर दिया। फिर हमें गिरफ्तार कर यरवादा के जेल में कुछ महीने रखा गया और वहाँ भी हमारे ख़िलाफ़ भेदभाव की नीति थी।” 18 फरवरी को शुरू हुई इस हड़ताल में धीरे धीरे तकरीबन 10,000-20,000 नाविक शामिल हो गए, इसका कारण यह था कि कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापत्तनम और अंडमान द्वीप समूह में स्थापित बंदरगाहों के चलते एक बड़ा वर्ग इस हड़ताल के प्रभाव में आ गया। जल्द ही प्रदर्शनकारी नाविक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, कमांडर F M किंग द्वारा दुर्व्यवहार और अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के चलते कार्यवाही, RIN के कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते को उनके समकक्ष अंग्रेज़ कर्मचारियों के सममूल्य रखने, इंडोनेशिया में तैनात भारतीय बलों की रिहाई, और अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों के साथ बेहतर व्यहार करने जैसे मुद्दों की मांग करने लगे।