भारत शासन अधिनियम 1935 क्या है
भारत सरकार अधिनियम -1935 ब्रिटिश संसद द्वारा अगस्त, 1935 में भारत शासन हेतु पारित किया सर्वाधिक विस्तृत अधिनियम था। इसमें वर्मा सरकार अधिनियम-1935 भी शामिल था। भारत सरकार अधिनियम-1935 में यह अधिकथित था कि, यदि आधे भारतीय राज्य संघ में शामिल होने के लिए सहमत होते है तो, भारत को एक संघ बनाया जा सकता है। इस स्थिति में उन्हें केंद्रीय विधायिका के दोनों सदनों में अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया जायेगा, लेकिन संघ से सम्बंधित प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सका। इस अधिनियम में स्वतंत्रता की बात तो दूर , भारत को डोमिनियन का दर्जा देने की भी कोई चर्चा नहीं की गयी थी।
1935 के अधिनियम ने प्रान्तों की तत्कालीन स्थिति में सुधार किया था क्योंकि इसमें प्रांतीय स्वायत्तता के प्रावधान को शामिल किया गया था। इस व्यवस्था के अनुसार प्रांतीय सरकारों के मंत्रियों को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया, साथ ही विधायिका के अधिकारों में वृद्धि भी की गयी। हालाँकि पुलिस जैसे कुछ विषय अभी भी सरकार के प्राधिकार में ही थे। मतदान के अधिकार भी सीमित ही रहे क्योंकि अभी भी कुल जनसंख्या के 14% भाग को ही मतदान करने का अधिकार प्राप्त था। गवर्नर जनरल और गवर्नरों की नियुक्ति अभी भी ब्रिटिश सरकार के द्वारा की जाती थी और वे विधायिका के प्रति उत्तरदायी भी नहीं थे। यह अधिनियम कभी भी उन उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर पाया जिनकी प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन संघर्ष कर रहा था।
अधिनियम के प्रावधान
- इस अधिनियम ने द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त किया।
- ब्रिटिश भारत और कुछ या सभी रियासतों के लिए भारत संघ की स्थापना का प्रयास किया।
- प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की स्थापना की और मत देने के अधिकार का विस्तार किया गया और 35 मिलियन लोगों को मत देने का अधिकार प्रदान कर दिया।
- प्रान्तों को भी आंशिक रूप से पुनर्संगठित किया।
- सिंध प्रान्त को बम्बई से अलग कर दिया गया।
- बिहार एवं उड़ीसा प्रांत को बिहार और उड़ीसा नाम के दो अलग-अलग प्रान्तों में बाँट दिया गया।
- बर्मा को भारत से पूर्णतः अलग कर दिया गया।
- अदन को भी भारत से अलग कर एक स्वतंत्र उपनिवेश बना दिया।
- प्रांतीय सदनों की सदस्यता में भी बदलाव किया गया ताकि और अधिक निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों को उसमें शामिल किया जा सके।
- अब ये भारतीय सदस्य बहुमत प्राप्त कर सरकार भी बना सकते थे।
- संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी।
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