अकबर के दरबार के नवरत्न कौन-कौन थे

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अकबर के दरबार के नवरत्न कौन-कौन थे?

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अकबर भारत का महानतम मुग़ल शंहशाह बादशाह था। जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म, शहंशाह अकबर तथा महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। निरक्षर होते हुई भी अकबर को कलाकारों एवं बुद्धिजीवियो से विशेष प्रेम था। उसके इसी प्रेम के कारण अकबर के दरबार में नौ (9) अति गुणवान दरबारी थे जिन्हें अकबर के नवरत्न के नाम से भी जाना जाता है। अकबर के दरबार में 9 विशेष दरबारी थे जिन्हें अकबर के ‘नवरत्न‘ के नाम से भी जाना जाता है। अकबर के दरबार को सुशोभित करने वाले 9 रत्न निम्न थे

क्र. सं नाम कार्य
1. बीरबल

(1528-1583)

दरबार के विदूषक और अकबर के सलाहकार थे। ये परम बुद्धिमान कहे नवरत्नों में सर्वाधिक प्रसिद्ध बीरबल का जन्म कालपी में 1528 ई. में ब्राह्मण वंश में हुआ था। बीरबल के बचपन का नाम ‘महेशदास’ था। यह अकबर के बहुत ही नज़दीक था। उसकी छवि अकबर के दरबार में एक कुशल वक्ता, कहानीकार एवं कवि की थी। अकबर ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसे (बीरबल) कविराज एवं राजा की उपाधि प्रदान की, साथ ही 2000 का मनसब भी प्रदान किया। बीरबल पहला एवं अन्तिम हिन्दू राजा था, जिसने दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार किया था। अकबर ने बीरबल को नगरकोट, कांगड़ा एवं कालिंजर में जागीरें प्रदान की थीं। 1583 ई. में बीरबल को न्याय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी बनाया गया। 1586 ई. में युसुफ़जइयों के विद्रोह को दबाने के लिए गये बीरबल की हत्या कर दी गई। अबुल फ़ज़ल एवं बदायूंनी के अनुसार-अकबर को सभी अमीरों से अधिक बीरबल की मृत्यु पर शोक पहुँचा था।
2. अबुल फ़ज़ल

(1551-1602)

अबुल फजल ने अकबर के काल को कलमबद्ध किया था। उसने अकबर नामा की भी रचना की थी। इसने ही आइन-ए-अकबरी भी रचा था। सूफ़ी शेख़ मुबारक के पुत्र अबुल फ़ज़ल का जन्म 1550 ई. में हुआ था। उसने मुग़लकालीन शिक्षा एवं साहित्य में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। 20 सवारों के रूप में अपना जीवन आरम्भ करने वाले अबुल फ़ज़ल ने अपने चरमोत्कर्ष पर 5000 सवार का मनसब प्राप्त किया था। वह अकबर का मुख्य सलाहकार व सचिव था। उसे इतिहास, दर्शन एवं साहित्य पर पर्याप्त जानकारी थी। अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म का वह मुख्य पुरोहित था। उसने अकबरनामा एवं आइने अकबरी जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। 1602 ई. में सलीम (जहाँगीर) के निर्देश पर दक्षिण से आगरा की ओर आ रहे अबुल फ़ज़ल की रास्ते में बुन्देलासरदार ने हत्या कर दी।
3. टोडरमल राजा टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे। इन्होंने विश्व की प्रथम भूमि लेखा जोखा एवं मापन प्रणाली तैयार की थी। उत्तर प्रदेश के एक क्षत्रिय कुल में पैदा होने वाले टोडरमल ने अपने जीवन की शुरुआत शेरशाह सूरी के जहाँ नौकरी करके की थी। 1562 ई. में अकबर की सेवा में आने के बाद 1572 ई. में उसे गुजरात का दीवान बनाया गया तथा बाद में 1582 ई. में वह प्रधानमंत्री बन गया। दीवान-ए-अशरफ़ के पद पर कार्य करते हुए टोडरमल ने भूमि के सम्बन्ध में जो सुधार किए, वे नि:संदेह प्रशंसनीय हैं। टोडरमल ने एक सैनिक एवं सेना नायक के रूप में भी कार्य किया। 1589 ई. में टोडरमल की मृत्यु हो गई।
4. तानसेन संगीत सम्राट तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ था। उसके संगीत का प्रशंसक होने के नाते अकबर ने उसे अपने नौ रत्नों में शामिल किया था। मिंया तानसेन अकबर के दरबार में गायक थे। वह कविता भी लिखा करते थे। उसने कई रागों का निर्माण किया था। उनके समय में ध्रुपद गायन शैली का विकास हुआ। अकबर ने तानसेन को ‘कण्ठाभरणवाणीविलास’ की उपाधि से सम्मानित किया था। तानसेन की प्रमुख कृतियाँ थीं-मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार, मियां की सारंग, दरबारी कान्हड़ा आदि। सम्भवत: उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
5. मानसिंह राजा मान सिंह आम्बेर (जयपुर) के कच्छवाहा राजपूत राजा थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। इनकी बुआ जोधाबाई अकबर की पटरानी थी। आमेर के राजा भारमल के पौत्र मानसिंह ने अकबर के साम्राज्य विस्तार में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मानसिंह से सम्बन्ध होने के बाद अकबर ने हिन्दुओं के साथ उदारता का व्यवहार करते हुए जज़िया कर को समाप्त कर दिया। काबुल, बिहार, बंगाल आदि प्रदेशों पर मानसिंह ने सफल सैनिक अभियान चलाया।
6. अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना एक कवि थे और अकबर के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे। अब्दुर्रहीम उच्च कोटि का विद्वान एवं कवि था। उसने तुर्की में लिखे बाबरनामा का फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया था। जहाँगीर अब्दुर्रहीम के व्यक्तित्व से सर्वाधिक प्रभावित था,जो उसका गुरु भी था। रहीम को गुजरात प्रदेश को जीतने के बाद अकबर ने ख़ानख़ाना की उपाधि से सम्मानित किया था।
7. मुल्ला दो प्याज़ा अरब का रहने वाला प्याज़ा हुमायूँ के समय में भारत आया था। उनका असल नाम अब्दुल हसन था और वह सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक थे अब्दुल हसन अपना अधिकांश समय किताबें पढ़ने में गुजारते थे उन्हें साधारण जीवन मंज़ूर न था और उनका सपना था कि वह अकबर के दरबारियों में शामिल हों। इसी कोशिश में कई महीने की मशक्कत के बाद वह किसी तरह शाही परिवार के मुर्ग़ीखाना के प्रभारी बन गए. पढ़े-लिखे होने के कारण मुल्ला इससे बेहद निराश थे, पर उन्होंने धैर्य न खोया और मेहनत करते रहे। अकबर मुल्ला से प्रभावित हुए और उन्हें शाही पुस्तकालय का प्रभारी बना दिया। हालाँकि मुल्ला इससे भी बहुत खुश नहीं थे, पर उन्होंने धीरज बनाए रखा ।एक साल गुज़रा और जब अकबर पुस्तकालय गए तो देखकर बेहद खुश हुए कि हर किताब ज़री और मखमल से लिपटी थी। अकबर इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें शाही दरबार में जगह दे दी।  मुल्ला का सपना हक़ीक़त में बदल गया। मुल्लाह दो प्याजा अकबर के सलाहकार थे। भोजन में उसे दो प्याज़ अधिक पसन्द था। इसीलिए अकबर ने उसे दो प्याज़ा की उपाधि प्रदान की थी।
8. हक़ीम हुमाम हक़ीम हुमाम, मुग़ल सम्राट अकबर का सलाहकार और नवरत्नों में से एक था। यह हक़ीम अबुलफ़तह गीलानी का भाई था। इसका नाम हुमायूँ था। जब हक़ीम हुमाम, अकबर बादशाह की सेवा में भर्ती हुआ तब सम्मान के विचार से इसका नाम पहले हुमायूँ कुलीख़ाँ हुआ और इसके अनंतर यह हक़ीम हुमाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह खत (लिपि) पहिचानने में और कविता समझने में अपने समय का एक विशेषज्ञ था। यह मनोविज्ञान तथा वैंद्यक में कुछ गम रखता था। आचारवान, उदार, मीठा बोलने वाला तथा मिलनसार था। यह बावर्ची खाने के भंडारी-पद पर नियत था, पर बादशाह का मुसाहेब तथा परिचित होने से इसका सम्मान अधिक था। हक़ीम हुमाम अकबर के सलाहकार थे।यह अकबर के रसोईघर का प्रधान था।
9. फैजी फैजी अबुल फ़ज़ल का भाई था। वह फ़ारसी में कविता करता था। राजा अकबर ने उसे अपने बेटे के गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त किया था। अबुल फ़ज़ल का बड़ा भाई फ़ैज़ी अकबर के दरबार में राज कवि के पद पर आसीन था। वह दीन-ए-इलाही धर्म का कट्टर समर्थक था। 1595 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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