प्रथम विश्व युद्ध के कारण और परिणाम बताइए

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प्रथम विश्व युद्ध के कारण और परिणाम बताइए-

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प्रथम विश्वयुद्ध के कारण : – 

राष्ट्रीयता की उग्र भावना : – युद्ध का आधारभूत कारण यूरोप के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना थी। कुछ समय के उपरांत इस भावना ने उग्र रूप धारण किया। इसके अंतर्गत राष्ट्रों ने अपनी प्रगति के लिये विशेष रूप से प्रयत्न करने आरंभ किये और उन्होंने अन्य राष्ट्रों के हितों, स्वार्थों तथा उनकी इच्छाओं की और तनिक भी ध्यान नहीं दिया।

बिस्मार्क की नीति : – फ्रांस को परास्त कर बिस्मार्क ने फ्रांस के ही प्रदेशों एल्सास और लोरेन पर जर्मनी का अधिकार स्थापित किया था। फ्रांस जर्मनी से अपनी इस पराजय का प्रतिरोध लेना चाहता था। वह अपने खोये हुये प्रदेशों का पुन: प्राप्त करने की हार्दिक इच्छा रखता था। फ्रांस को असहाय बनाने के उद्देश्य से बिस्मार्क ने रूस, आस्ट्रिया और इटली से संधि की। जिसके परिणामस्वरूप उसकी स्थिति बहुत ही दृढ़ हो गई और फ्रांस को हर समय जर्मनी के आक्रमण का भय बना रहा।

रूस और फ्रांस की संधि : – बिस्मार्क द्वारा सम्पन्न जर्मन -रूस संधि का अंत 1900 ई. में हो गया जिसका दाहे राया जाना आवश्यक था किन्तु बिस्मार्क के पतन के उपरांत जर्मन-सम्राट विलियम द्वितीय ने उस संधि का दोहराना जर्मनी के लिये हितकर नहीं समझा। इससे रूस समझ गया कि जर्मनी उसकी अपेक्षा आस्ट्रिया की ओर अधिक आकृष्ट है। रूस अकेला रह गया और उसका ध्यान फ्रांस की ओर गया। फ्रांस भी यूरोप में एक मित्र की खाजे में था। इसीलिए परिस्थिति से बाध्य होकर उसने 1893 ई. में फ्रांस के साथ संधि की जिसने फ्रांस के अकेलेपन का अंत कर दिया और जर्मनी के विरूद्ध एक गुट का निर्माण हुआ।

फ्रांस और इंगलैंड की संधि : – फ्रांस और इंगलैंड में पर्याप्त समय से औपनिवेशिक विषयों के संबंध में बड़ी कटुता उत्पन्न हो गई थी। किन्तु बीसवीं शताब्दी के आरंभ में दोनों जर्मनी की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर एक दूसरे की और आकृष्ट हुये। 1904 ई. में दोनों के मध्य एक समझौता हुआ जो एंगलो फ्रेचं आंता के नाम से विख्यात है। 1907 ई. में फ्रांस के विशेष प्रयत्नों के परिणामस्वरूप रूस भी इस समझौते में सम्मिलित हो गया। इस प्रकार 1907 ई. में जर्मनी के विरूद्ध इंगलैंड, रूस और फ्रांस का गुट बन गया। अत: यूरोप दो विरोधी गुटों में विभक्त हो गया।

कैसर विलियम ।। की महत्वाकांक्षा :- जर्मन सम्राट विलियम।। जर्मनी को संसार की संसार की श्रेष्ठतम शक्ति बनाना चाहता था। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि जर्मनी केवल एक यूरोपीय शक्ति न रहकर अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति का रूप धारण करे। उसमें साम्राज्य विस्तार की भावना का उदय हुआ। अत: उसने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये भरसक प्रयत्न किया। किन्तु उसको इस दिशा में विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। क्योंकि जब जर्मनी इस क्षेत्र में अवतीर्ण हुआ उस समय इंगलैंड, फ्रांस अपने विशाल साम्राज्यों की स्थापना कर चुके थे। किन्तु जर्मनी ने फिर भी इस ओर कदम उठाया।

जर्मनी की पूर्वी नीति : – जब जर्मनी अपने साम्राज्य की स्थापना करने में सब ओर से निराश हो गया तो उसका ध्यान पूर्व की ओर आकर्षित हुआ। उसने अपने साम्राज्य के विस्तार के अभिप्राय से इस मार्ग का अनुकरण किया। जर्मनी ने टर्की से मित्रता की और वहां अपने प्रभाव का विस्तार करना आरंभ किया। उसने बाल्कन प्रायद्वीप में आस्ट्रिया की नीति का समर्थन कर रूस की नीति का तथा वहां के राज्यों की राष्ट्रीयता की भावना का विरोध किया।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम  : – 

युद्ध की व्यापकता : – यह युद्ध बहुत व्यापक हुआ। इस युद्ध में जितने लागे सम्मिलित हुए उससे पूर्व के युद्धों में इतने अधिक व्यक्ति सम्मिलित नहीं हुए। यह युद्ध यूरोप और एशिया महाद्वीपों में हुआ। इस युद्ध में 30 राज्यों ने भाग लिया और विश्व के 87 प्रतिशत व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में इसमें भाग लिया। संसार के केवल 14 देशों ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया और उन्होंने तटस्थ नीति का अनुकरण किया। इसमें लगभग 61 कराडे व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष रूप के भाग लिया। इनमें से 85 लाख व्यक्ति मारे गये, 2 करोड़ के लगभग व्यक्ति घायल हुए, बन्दी हुए या खो गये।

धन की क्षति : – इस युद्ध में अतुल धन का व्यय हुआ और यूरोप के समस्त राष्ट्रों को आर्थिक संकट का विशेष रूप से सामना करना पड़ा। इसमें लगभग 10 अरब रूपया व्यय हुआ। मार्च 1915 ई. तक इंगलैंड का दैनिक व्यय मध्यम रूप से 15 लाख पौंड, 1915-16 ई. में 40 लाख, 1916-17 ई. में 55 लाख और 1917-18 ई. में 65 लाख पौंड हो गया और उसका राष्ट्रीय ऋण युद्ध के अंत तक 7080 लाख से बढ़कर 74350 लाख पौंड हो गया था। फ्रांस का राष्ट्रीय ऋण 341880 लाख फ्रेंक से बढ़कर 1974720 लाख फ्रेंक और जर्मनी का 50000 लाख मार्क से बढ़कर 1306000 लाख मार्क हो गया था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस युद्ध में अत्यधिक धन का व्यय हुआ।

राजनीतिक परिणाम : – इस युद्ध के राजनीतिक परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हुए। इस युद्ध के पश्चात् राजतंत्र शासन का अंत हुआ और उनके स्थान पर गणतंत्र या जनतंत्र शासन की स्थापना का युग आरंभ हुआ। जर्मन, रूस, टर्की, आस्ट्रिया, हगं री, बल्गारिया, आदि देशों के सम्राटों को अपना पद त्यागना पड़ा और राजसत्ता पर जनता का अधिकार स्थापित हो गया। प्राचीन राजवंशों का अन्त हुआ। यूरोप पर जनता का अधिकार स्थापित हो गया। यूरापे में नये 11 गणतंत्र राज्यों की स्थापना हुई, जिनके नाम इस प्रकार हैं- 1. जर्मन, 2. आस्ट्रिया, 3. पोलैंड, 4. रूस, 5. चैकोस्लोवाकिया, 6. लिथुएनिया, 7. लेटविया, 8. एन्टोनिया, 9. फिनलैंड, 10. यूकेन और 11. टर्की।

आर्थिक परिणाम :- युद्ध के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव बहतु अधिक प्रभाव बढ़ गया और अब लोगों के मन में यह भावना उत्पन्न हो गई कि उद्योग-धन्ध्ज्ञों का राष्ट्रीयकरण करके समस्त उद्यागे -धन्धों पर राज्य का सम्पूर्ण अधिकार और नियंत्रण स्थापित किया जाये। इस दिशा में यद्यपि अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई, किन्तु फिर भी प्रत्येक देश में इस संबंध में राज्यों की ओर से विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेप किये गये।

सामाजिक परिणाम : – इस युद्ध के सामाजिक क्षेत्रों में भी बड़े महत्वपूर्ण परिणाम हुये। रण क्षेत्रों में लोगों की मांग निरंतर बढ़ती रही, जिसके कारण बहुत से व्यक्ति जो अन्य कार्यों में व्यस्त थे, उनको अपने काम छोड़कर सैनिक सेवायें करने के लिये बाध्य होना पड़ा। उनके कार्यों को पूरा करने के लिये स्त्रियों को काम करना पड़ा। इस प्रकार उन्होनें गृहस्थ जीवन का परित्याग कर मिल और कारखानों में कार्य करना आरंभ किया। उनको अपने महत्व का ज्ञान हुआ तथा नारी जाति में आत्म-विश्वास का उदय हुआ।

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