द्वैताद्वैतवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया था
द्वैतद्वैत दर्शन के प्रणेता निम्बार्क हैं। उनके दर्शन को भेदाभेदवाद (भेद+अभेद वाद) भी कहते है। ईश्वर, जीव व जगत के मध्य भेदाभेद सिद्ध करते हुए द्वैत व अद्वैत दोनों की समान रूप से प्रतिष्ठा करना ही निम्बार्क दर्शन (द्वैताद्वैत) की प्रमुख विशेषता रही है। श्रीनिम्बार्काचार्य चरण ने बह्म ज्ञान का कारण एकमात्र शास्त्र को माना है। सम्पूर्ण धर्मों का मूल वेद है। वेद विपरीत स्मृतियाँ अमान्य है। जहाँ श्रुति में परस्पर द्वैत (भिन्न रूपत्व) भी आता हो वहाँ श्रुति रूप होने से दोनों ही धर्म है। किसी एक को उपादेय तथा अन्य को हेय नही कहा जा सकता। तुल्य बल होने से सभी श्रुतियाँ प्रधान है।
Subhash Saini Changed status to publish