गुप्त युग के दौरान सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था
गुप्त युग के दौरान सामाजिक जीवन-
- गुप्तयुगीन समाज में वर्ण व्यवस्था पूर्णरूपेण प्रतिष्ठित थी। भारतीय समाज के परंपरागत चार वर्णों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र के अतिरिक्त कुछ अन्य जाति भी अस्तित्व में आ चुकी थी।
- चारों वर्णों की सामाजिक स्थिति में विभेद किया जाता था। वाराहमिहिर के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के घर क्रमशः पांच, चार, तीन तथा दो कमरों वाले होने चाहिए। न्याय व्यवस्था में भी विभिन्न वर्णों की स्थिति के अनुसार भेद-भाव करने का विधान मिलता है।
- दास प्रथा -स्मृति ग्रंथों से समाज में दास प्रथा के प्रचलन का भी प्रमाण मिलता है। युद्ध में बंदी बनाये गये तथा ऋण न चुका सकने वाले लोग प्रायःदास बनाये जाते थे।
- स्त्रियों की दशा – गुप्तकाल में स्रियों को प्रतिष्ठित स्थान दिया गया था। सजातीय विवाह होते थे। ऐसे भी उदाहरण देखने को मिलते हैं – निम्न वर्ण की कन्या का विवाह उच्च वर्ण में हो जाता था। ऐसे विवाह को अनुलोम विवाह कहा जाता था।
गुप्त युग के दौरान धार्मिक जीवन –
- गुप्त राजाओं का शासन काल ब्राह्मण (हिन्दू) धर्म की उन्नति के लिये प्रख्यात है। गुप्त शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे तथा उनकी उपाधि परमभागवत की थी।
- धार्मिक सहिष्णुता एवं उदारता की नीति ने इस काल में विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों को फलने-फूलने का समुचित अवसर प्रदान किया था।
- वे बिना किसी भेद-भाव के उच्च प्रशासनिक पदों पर सभी धर्मानुयायियों की नियुक्तियाँ करते थे। सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने पुत्र की शिक्षा – दीक्षा के लिये प्रख्यात बौद्ध विद्वान वसु-बंधु को नियुक्त किया था। चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शैव वीरसेन तथा बौद्ध आम्रकार्द्दव को क्रमशः अपने प्रधान मंत्री एवं प्रधान सेनापति के रूप में नियुक्त किया था। फाहियान जो स्वयं बौद्ध था, उसकी धार्मिक सिहष्णुता की प्रशंसा करता है।
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