प्राचीन काल में पाण्डुलिपि लिखी जाती थी
हिन्दी भाषा में यह ‘पाण्डुलिपि’, ‘हस्तलेख’, ‘हस्तलिपि’ इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ। अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उनमें ताडपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र और सुवर्णपत्र आदि प्रसिद्ध प्रकार हैं । वर्तमान में सर्वाधिक मातृकाग्रन्थ भोजपत्रों और ताडपत्रों में प्राप्त होते हैं । ताडपत्र लौह लेखनी से लिखे जाते थे। इस समस्त संसार में ज्ञानियों और पण्डितों का देश एकमात्र भारत ही है, जहाँ विपुल ज्ञानसम्पदा हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है।
Subhash Saini Changed status to publish