चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति क्या है

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चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति क्या है?

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बर्तनों को धूसर मृदभांड कहा जाता है। चित्रित धूसर मृद्भाण्ड इस काल की विशिष्टता थी, क्योंकि यहाँ के निवासी मिट्टी के चित्रित और भूरे रंग के कटोरों तथा थालियों का प्रयोग करते थे।

चित्रित धूसर मृदभांड पश्चिमी गंगा के मैदान और भारतीय उपमहाद्वीप पर घग्गर-हकरा घाटी के लौह युग की भारतीय संस्कृति है जो लगभग 1200 ईसा पूर्व से शुरू होकर 600 ईसा पूर्व तक चली। यह संस्कृति काली और लाल मृदभांड संस्कृति के बाद प्रारंभ हुई। हस्तिनापुर, मथुरा, अहिछत्र, काम्पिल्य, बरनावा, कुरुक्षेत्र आदि सभी इसी संस्कृति से जुड़े हुए हैं। सम्भवतः हड़प्पा संस्कृति के बाद या इसके अंतिम चरण में इस संस्कृति का विकास हुआ। इस दौरान धूमिल भूरे रंग की मिट्टी के बर्तन बनाये गये जिनमें काले रंग के ज्यामितीय पैटर्न (Pattern) को उकेरा गया। विभिन्न गांव और शहरों में इनका निर्माण किया गया हालांकि, ये हड़प्पा सभ्यता के शहरों जितने बड़े नहीं थे। इस दौरान हाथी दांत और लोहे की धातु को अधिकाधिक प्रयोग में लाया गया। इस संस्कृति को मध्य और उत्तर वैदिक काल अर्थात कुरु-पंचाल साम्राज्य से जोड़ा जाता है जो सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद दक्षिण एशिया में पहला बड़ा राज्य था। इस प्रकार यह संस्कृति मगध साम्राज्य के महाजनपद राज्यों के उदय के साथ जुड़ी हुई है। पी.जी.डब्ल्यू. संस्कृति में चावल, गेंहू, जौं का उत्पादन किया गया तथा पालतू पशुओं जैसे भेड़, सूअर और घोड़ों को पाला गया। संस्कृति में छोटी झोपड़ियों से लेकर बड़े मकानों का निर्माण मलबे, मिट्टी या ईंटों से किया गया था।

ये सभी अवशेष यह इंगित करते हैं कि चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति महाभारत काल से जुड़ी हुई थी तथा इसके साथ यह भी पता चलता है कि लगभग 1500 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक आलमगीरपुर और हस्तिनापुर में मानव निवास हुआ करता था।

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