मुगल काल में मुद्रा प्रणाली क्या थी
मुगलकालीन मुद्रा-प्रणाली-
- मुगलकाल में सिक्का प्रणाली तीनों धातुओं,अर्थात् सोने, चाँदी और ताँबे में निर्मित होता था।
- बाबर के चाँदी के सिक्कों पर एक तरफा कलमा और चारों खलीफाओं का नाम तथा दूसरी ओर बाबर का नाम एवं उपाधि अंकित थी।
- बाबर ने काबुल में चाँदी का शाहरुख तथा कंधार में बाबरी नाम का सिक्का चलाया।
- शेरशाह ने मिली-जुली धातुओं के स्थान पर शुद्ध चाँदी का सिक्का चलाया। जिसे रुपया(180ग्रेन) कहा जाता था।उसने ताँबे का भी सिक्का चलाया। जिसे पैसा कहा जाता था।
- चाँदी का मानक सिक्का रुपया (शेरशाह द्वारा प्रवर्तित) कहलाता था। जिसका वजन 175ग्रेन का था।यह मुगलकालीन मुद्रा व्यवस्था का आधार था।
- मुगलकालीन मुद्रा को एक सुव्यवस्थित एवं व्यापक आधार अकबर ने दिया।उसने 1577ई. में दिल्ली में एक शाही टकसाल बनवायी और जिसका प्रधान ख्वाजा अब्दुरस्समद को नियुक्त किया।
- अकबर ने अपने शासन के प्रारंभ में मुहर नामक एक सोने का सिक्का चलाया।जो मुगल काल का सबसे अधिक प्रचलित सिक्का था।
- आइने-अकबरी के अनुसार 1मुहर नौ रुपये के बराबर होता था।
- अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बङा सोने का सिक्का शंसब था,जो 101 तोले का था। यह बङे लेन-देन में प्रयुक्त होता था।
- इसके अतिरिक्त अकबर ने सोने का एक सिक्का इलाही चलाया।जिसका वजन 10रु. के बराबर था।यह गोलाकार सिक्का था।
- अकबर ने ताँबे का एक सिक्का दाम चलाया,जो रुपये के 40 वें भाग के बराबर होता था।
- ताँबे का सबसे छोटा सिक्का- जीतल कहलाता था। जो एक दाम के 25वें भाग के बराबर होता था। इसका प्रयोग केवल हिसाब-किताब के लिए ही होता था। लेकिन सिक्के के रूप में इसका अस्तित्व नहीं था। इसे फुलूस या पैसा भी कहा जाता था।
- अकबर ने अपने कुछ सिक्कों पर राम और सीता की मुर्ति अंकित करवायी और देवनागरी में राम-सिया लिखवाया।
- अकबर ने असीरगढ दुर्ग की विजय स्मृति में एक सोने का सिक्का चलाया,जिस पर एक ओर बाज और दूसरी ओर टकसाल का नाम तथा ढालने की तिथि अंकित करवायी।
- 1616तक रुपये का मूल्य 40दामों के बराबर था किन्तु 1627ई. के बाद यह लगभग 30 दामों के बराबर हो गया।जहाँगीर ने निसार नामक एक सिक्का चलाया,जो रुपये के चौथाई मूल्य के बराबर होता था।
- शाहजहाँ ने दाम और रुपये के बीच आना नामक सिक्के का प्रचलन करवाया।
- मुगलकाल में सर्वाधिक रुपये की ढलाई औरंगजेब के काल में हुई।औरंगजेब ने राज्यारोहण के बाद सिक्कों पर कलमा अंकन की प्रथा को बंद करवा दिया।उसने अपने अंतिम काल में ढाले गये कुछ सिक्कों पर मीर अब्दुल बाकी शाहबई द्वारा रचित एक पद्य अंकित करवाया।
- अबुल-फजल के अनुसार – 1575ई. में सोने के सिक्कों को ढालने के लिए 4 टकसालें,चाँदी के सिक्कों के लिए14टकसालें तथा ताँबे के सिक्कों के लिए 42 टकसालें थी।
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