भक्ति आंदोलन के उदय के कारण बताइए

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भक्ति आंदोलन के उदय के कारण बताइए?

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मध्य काल में भक्ति आंदोलन की शुरुआत सर्वप्रथम दक्षिण के अलवार तथा नयनार संतों द्वारा की गई। बारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में रामानंद द्वारा यह आंदोलन दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाया गया। इस आंदोलन को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की। भक्ति आंदोलन का उद्देश्य था- हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। अपने उद्देश्यों में यह आंदोलन काफी हद तक सफल रहा।

भारत में भक्ति आंदोलन के उदय के कारण-

  • मुस्लिम शासकों के बर्बर शासन से कुंठित एवं उनके अत्याचारों से त्रस्त हिन्दू जनता ने ईश्वर की शरण में अपने को अधिक सुरक्षित महसूस कर भक्ति मार्ग का सहारा लिया।
  • हिन्दू एवं मुस्लिम जनता के आपस में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संपर्क से दोनों के मध्य सद्भाव, सहानुभूति एवं सहयोग की भावना का विकास हुआ। इस कारण से भी भक्ति आंदोलन के विकास में सहयोग मिला।
  • सूफी संतों की उदार एवं सहिष्णुता की भावना तथा एकेश्वरवाद में उनकी प्रबल निष्ठा ने हिन्दुओं को प्रभावित किया; जिस कारण से हिन्दू, इस्लाम के सिद्धांतों के निकट सम्पर्क में आये।
  • हिन्दुओं ने सूफियों की तरह एकेश्वरवाद में विश्वास करते हुए ऊँच-नीच एवं जात-पात का विरोध किया। शंकराचार्य का ज्ञान मार्ग व अद्वैतवाद अब साधारण जनता के लिये बोधगम्य नहीं रह गया था।
  • मुस्लिम शासकों द्वार मूर्तियों को नष्ट एवं अपवित्र कर देने के कारण, बिना मूर्ति एवं मंदिर के ईश्वर की आराधना के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा, जिसके लिये उन्हें भक्ति मार्ग का सहारा लेना पड़ा।
  • तत्कालीन भारतीय समाज की शोषणकारी वर्ण व्यवस्था के कारण निचले वर्णों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। भक्ति-संतों द्वारा दिये गए सामाजिक सौहार्द्र और सद्भाव के संदेश ने लोगों को प्रभावित किया।

भक्ति आंदोलन से हिन्दू-मुस्लिम सभ्यताओं का संपर्क हुआ और दोनों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। भक्तिमार्गी संतों ने समता का प्रचार किया और सभी धर्मों के लोगों की आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति के लिये प्रयास किये।

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