दीन-ए-इलाही धर्म क्या था
दीन-ए-इलाही को 1582 ईस्वी में अकबर द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इसे तौहीद-ए-इलाही के नाम से भी जाना जाता था। इसमें दीन शब्द को बाद के काल में जोड़ा गया था। दीन-ए-इलाही में रहस्यवाद, प्रकृति पूजा और दर्शन आदि शामिल थे। अकबर के इस धार्मिक सिद्धांत में किसी भी नबी को मान्यता नहीं दी गयी थी। यह शांति और सहिष्णुता की नीति का समर्थन करता था। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक बदनामी भरे कार्य, कामुकता और वासना आदि जिसे घृणित गतिविधियों की मनाही थी। इसके अनुसार जानवरों के वध को निषिद्ध किया गया था और ब्रह्मचर्य का सम्मान किया गया था। दीन-ए-इलाही को अबुल फजल, बीरबल और फैजी द्वारा स्वीकार किया गया था। हालांकि दूसरे अन्य दरबारी लोग इस धर्म के प्रति उदासीन बने रहे। अकबर की मृत्यु के साथ ही इस नए धर्म की समाप्ति हो गयी लेकिन इसने मुग़ल साम्राज्य की एकता और एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।