अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधारों की विवेचना कीजिए
अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin khilji) प्रशासनिक क्षेत्र में महान् सेनानी था। राज्य के विषयों का प्रबन्ध करने में कोई भी मुसलमान शासक मुगलों से पूर्व ऐसा उदाहरण स्थापित न कर सका। शासन प्रबन्ध के विभिन्न क्षेत्रों में उसने बहुत से सुधार किए जिसमें से कुछ वस्तुतः मौलिक होने के अधिकारी हैं। वह प्रशासन के केन्द्रीकरण में पूर्ण विश्वास रखता था तथा उसने प्रान्तों के सूबेदारों और अन्य अधिकारियों को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा। सुल्तान में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका तथा न्यायपालिका की। सर्वोच्च शक्तियाँ विद्यमान थीं. वह स्वयं को अमीरुल मौमिनीन या सहधर्मियों का नेता मानता था। वह भी राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। उनके अधिकार असीमित थे तथा उस पर किसी का नियन्त्रण नहीं था।
मन्त्रीगण – राज्य में चार महत्वपूर्ण मन्त्री थे जो राज्य के चार स्तम्भ माने जाते थे-
- दीवान-ए-वजारत – यह मुख्य मन्त्री होता था. इसे वजीर भी कहा जाता था. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सिंहासनारोहण के समय ख्वाजा खातिर . को वजीर बनाया तथा 1997 ई. में उसके स्थान पर नुसरत खाँ वजीर बना. ताजुद्दीन काफूर भी उसका वजीर रहा. वजीर को वित्त के अतिरिक्त सैन्य अभियानों का भी नेतृत्व करना पड़ता था. उसके अधीन सहायता हेतु मुशरिफ (महालेखा पाल), मुस्तौफी (महालेख-निरीक्षक), वक्रूफ आदि कर्मचारी होते थे
- दीवान-ए-अर्ज (युद्ध मन्त्री) – यह दूसरा महत्वपूर्ण पद था। इसके मुख्य कार्य सैनिकों की भर्ती करना, उनके प्रशिक्षण व वेतन की व्यवस्था करना, युद्ध में साथ जाना व लूट का माल सम्भालना आदि थे। उसके अधीन नायब-आरिज-ए-मुमालिक (उपाधिकारी) होता था। अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मलिक नासिरुद्दीन मुल्क सिराजुद्दीन ‘आरिज-ए-मुमालिक’ था और उसका उपाधिकारी ख्वाजा हाजी नायब आरिज’ था।
- दीवान-ए-इंशा – यह तीसरा मुख्य पद था। इसके प्रमुख कार्य शाही उद्घोषणाओं और प्रपत्रों का प्ररूप बनाना, सरकारी कार्यों का लेखा-जोखा रखना प्रान्तपतियों व स्थानीय अधिकारियों से पत्र-व्यवहार करना आदि थे। इसके अधीन दबीर या सचिव होते थे। मुख्य दबीर आमतौर पर -दबीर-ए-खास’ सुल्तान का निजी सचिव) होता था जो जो पत्र-व्यवहार का कार्य व ‘फतहनामा’ (विजयों का लेखा-जोखा) तैयार करता था।
- दीवान-ए-रसालत – यह विदेशी विभाग तथा कूटनीतिक पत्र-व्यवहार से सम्बन्ध रखता था. इस विभाग को सुल्तान स्वयं देखता था और उसने किसी भी अमीर को यह विभाग नहीं सौंपा।
दीवान-ए-रियासत – अलाउद्दीन खिलजी ने यह एक नया मन्त्रालय खोला जिसके अधीन राजधानी के आर्थिक मामले थे। वह बाजार की सम्पूर्ण व्यवस्था का संघीय मंत्री या अधिकारी होता था। ‘याकूब’ को इस पद पर नियुक्त किया गया था। राजमहल के कार्यों की देख-रेख ‘वकील-ए-दर’ करता था। ‘वकील-ए-दर’ के बाद ‘अमीर-ए-दाजिब’ (उत्सव अधिकारी) का पद आता था. कुछ अन्य अधिकारी भी थे जैसे-सरजांदार (सुल्तान के अंग रक्षकों का नायक), ‘अमीर-ए-आखूर’ (अश्वाधिपति), ‘शहना-ए-पील’ (गजाध्यक्ष), ‘अमीर-ए-शिकार (शाही आखेट का अधीक्षक), ‘शराबदार’ (सुल्तान के पेयों का प्रभारी), ‘मुहरदार’ (शाही मुद्रा-रक्षक) आदि।
न्याय प्रशासन – सुल्तान अपील की मुख्य अदालत था। उसका फैसला अन्तिम होता था। उसके बाद ‘सद्र-ए-जहाँ काजी उल कुजात’ मुख्य न्यायाधिकारी होता था। उसके अधीन नायब काजी या अल कार्य करते थे और उनकी सहायता के लिए मुफ्ती’ होते थे। गाँवों में मुखिया और पंचायतें झगड़ों का निपटारा करती थीं। ‘अमीर-ए-दाद’ नामक अधिकारी दरबार में ऐसे प्रभावशाली व्यक्तियों को प्रस्तुत करता था जिन पर काजियों का नियंत्रण नहीं होता था।
पुलिस एवं गुप्तचर व्यवस्था – अलाउद्दीन खिलजी ने पुलिस व गुप्तचर विभाग को कुशल व प्रभावशाली बनाया। गर्वनर, मुस्लिम सरदार, बड़े-बड़े अधिकारियों और साधारण जनता के कार्यों और षड़यन्त्रों आदि की पूर्ण जानकारी रखने हेतु गुप्तचर व्यवस्था को बहुत महत्व दिया। कोतवाल शांति व कानून का रक्षक था तथा वह ही मुख्य पुलिस अधिकारी था. पुलिस व्यवस्था को सुधारने के लिए कई पदों का सृजन किया गया और उन पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की गई। गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी ‘बरीद-ए-मुमालिक’ होता था। उसके नियन्त्रण में अनेक बरीद (संदेश वाहक) कार्य करते थे। बरीद के अतिरिक्त अन्य सूचना दाता को ‘मुनहियन’ तथा ‘मुन्ही’ कहा जाता था।
सैनिक प्रबन्ध – सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने साम्राज्य विस्तार, आन्तरिक विद्रोहों को कुचलने तथा बाह्य आक्रमणों का सामना करने हेतु व एक विशाल, सुदृढ़ तथा स्थाई साम्राज्य स्थापित करने के लिए सैनिक व्यवस्था की ओर पर्याप्त ध्यान दिया। उसने बलबन की तरह प्राचीन किलों की मरम्मत करवाई और कई नए दुर्ग बनवाए।